Yajnashala

यज्ञशाला

यज्ञशाला

यज्ञ का तात्पर्य है- त्याग, बलिदान एवं शुभ कर्म। अपने प्रिय खाद्य पदार्थों एवं मूल्यवान सुगंधित पौष्टिक द्रव्यों को अग्नि एवं वायु के माध्यम से समस्त संसार के कल्याण के लिए यज्ञ द्वारा वितरित किया जाता है। जिस स्थान पर यज्ञ सम्पादित किये जातें हैं उस स्थान विशेष को यज्ञशाला कहते हैं। विश्वविद्यालय में भी यज्ञशाला का निर्माण किया गया है। यज्ञशाला में वैदिक अनुष्ठानों एवं यज्ञों के सम्पादनार्थ विभिन्न प्रकार के भद्र मण्डल बनाये गए हैं। जैसे- सर्वतोभद्र मण्डल, चतुर्लिंगतोभद्र मण्डल, वास्तु मण्डल, एकाशीतिपदवास्तु मण्डल, नवग्रह मण्डल, षोडश मातृका मण्डल, सप्त घृत मातृका मण्डल, क्षेत्रपाल मण्डल, योगिनी मण्डल सहित विविध प्रकार के मण्डलों का सचित्र निर्माण किया गया है। इन मण्डलों को देखकर अनुष्ठानों में मण्डलों के स्वरूप का आसानी से ज्ञान किया जा सकता है। यह भी जाना जा सकता है कि किस मण्डल पर कौन से देवता का स्थान कहाँ है? उसका मुख किस ओर है और किस प्रकार से वैदिक मन्त्रों का उच्चारण करके षोडश उपचारों से विधिवत पूजन किया जा सकता है।

इस यज्ञशाला में एक काष्ठ की यज्ञशाला प्रदर्शन (डेमो) हेतु बनाई गई है। जिसमें यह स्पष्ट होता है कि किस प्रकार से स्मार्त्त यज्ञशाला बनाई जाती है और कैसे यज्ञ किया जाता है। जैसे- शतचंडी यज्ञ, सहस्त्र चंडी यज्ञ, लक्ष चंडी यज्ञ, विष्णु यज्ञ, रूद्र यज्ञ, लघु रूद्र यज्ञ , महारूद्र यज्ञ, अति रूद्र यज्ञ, हनुमान यज्ञ, लक्ष्मी यज्ञ, नवग्रह यज्ञ, हरिहरात्मक यज्ञ, वरुण यज्ञ इत्यादि विविध यज्ञों का प्रयोग-विधान आसानी से अध्येताओं को समझाया जा सकता है।

इसके अलावा यज्ञ विज्ञान को जानने के लिए यज्ञ मण्डप के प्रत्येक स्तम्भों और वेदियों, कुंड आदि स्थलों पर देवताओं का नाम लिख कर प्रदर्शित किया गया है। जिससे यह समझाया जा सकता है कि किस प्रकार जगत कल्याण के लिए ऋषियों के द्वारा यज्ञों का सम्पादन किया जाता था।

इस यज्ञशाला में गुरु-शिष्य परम्परा के द्वारा अध्ययन एवं अध्यापन कराया जाता है, उसके लिए विधिवत चटाई पर बैठकर गुरु और शिष्य तदनुरूप वस्त्र, वेशभूषा (धोती, कुर्त्ता, उत्तरीय इत्यादि ) धारण कर आमने सामने बैठ कर काष्ठपीठिका के ऊपर आसनस्थ ग्रन्थ को रखकर स्वाध्याय करते हैं। इसके अलावा इस यज्ञशाला में प्रायोगिक क्रियाओं का सम्पादन प्रत्यक्ष रूप से कारवाया जाता है। जिसमें विभिन्न प्रकार के देवताओं के चित्र रखे गये हैं। उन देवताओं के चित्रों को सामने रख कर विधिवत् उनका पूजन छात्रों से करवाया जाता है। इस अवसर पर छात्रों की समस्त जिज्ञासाओं को गुरु के द्वारा शांत किया जाता है। परम्परा में इसको किस प्रकार सम्पादित किया जाता है, यह भी सप्रमाण बताया जाता है। जिससे समाज में व्याप्त कुरीतियों और भ्रांतियों को दूर करने में मदद मिलती है। जैसे-गणेश पूजन, कलश पूजन इत्यादि का विधिवत् षोडश उपचार पूजा प्रयोग तथा कुंड में अग्नि सम्पादन का प्रयोग बताया जाता है।

इस यज्ञशाला में पौरोहित्य विभाग की कुछ पुस्तकें भी संग्रहित की गयी हैं जिसे विभागीय पुस्तकालय कहा जा सकता है। विभागीय छात्र यथा अवसर इन पुस्तकों का अध्ययन कर अपने ज्ञान में वर्धन करते हैं। यज्ञीय पात्रों का भी संग्रह सामान्य रूप से इस यज्ञशाला में है, जिसका प्रयोग स्मार्त्त यज्ञशाला में देखा जाता है।