प्राकृत विभाग

‘‘वाचः प्राकृत-संस्कृतौ श्रुतिगिरो’’ आद्यशंकराचार्य की इस उक्ति के अनुसार प्राकृत और संस्कृत-दोनों भाषायें भारतीय विद्या की संवाहिका हैं।
समस्त भाषाशास्त्रियों ने भारत की प्राचीनतम लोकभाषा के रूप में प्राकृतभाषा के अस्तित्व एवं महत्व को स्वीकार किया है। आचार्य पाणिनि, चण्ड, वररुचि, समन्तभद्र आदि अनेकों प्रख्यात भाषाविद-मनीषियों ने प्राकृत के व्याकरण ग्रन्थ लिखे। भगवान्-महावीर और महात्माबुद्ध जैसे प्रख्यात ऐतिहासिक महापुरूषों ने अपने उपदेश इसी भाषा में प्रदान किये। सम्पूर्ण आगम-साहित्य इसी भाषा में निबद्ध है। लोक-साहित्य की प्रायः सभी विधाओं में प्राकृतभाषा-निबद्ध साहित्य प्राप्त होता है। यथा-रूपकसाहित्य,काव्यसाहित्य, कथासाहित्य, चरितसाहित्य, दार्शनिकसाहित्य, छंदश्शास्त्रीयग्रंथ, कोशग्रंथ, मुक्तकसाहित्य, वास्तुशास्त्रीयग्रन्थ, ज्योतिषशास्त्रीयग्रन्थ, गणितशास्त्रीयग्रन्थ, भूगोलविद्या, खगोलविद्या, रसायनशास्त्र, धातुवाद, वनस्पतिशास्त्र, भूविज्ञान, रत्नविद्या आदि अनकेविध ज्ञान-विज्ञान के विषय अतिप्राचीनकाल से प्राप्त होते हैं, तथा विश्वभर के विद्वानों ने इनका अप्रतिम महत्व माना है।

विविध भारतीय आंचलिक एवं क्षेत्रीय भाषाओं के साथ-साथ राष्ट्रभाषा हिन्दी भी प्राकृत-अपभ्रंश की परम्परा में विकसित हुई है, संस्कृतभाषा के मूल-उत्स छान्दस्भाषा (वेदों की भाषा) में भी प्राकृतभाषायी तत्वों की प्रचुरता है।
अतः भारतीय भाषाशास्त्र, भाषाओं, बोलियों के क्रमिक विकास को समझने के लिए प्राकृतभाषा एवं इसके साहित्य का ज्ञान अत्यन्त आवश्यक है।
प्राचीन भारत के सभी शिलालेख (अभिलेखीय साहित्य) प्राकृतभाषा में ही निबद्ध है। प्राघ्मौर्ययुगीन अभिलेख, सिक्के, सम्राट् अशोक के अभिलेख, सम्राट् खारवेल का अभिलेख, वडली का अभिलेख इन सभी की भाषा प्राकृत है। प्राकृतभाषा का बहुआयामी साहित्य भारतीय इतिहास, संस्कृति, कला, दर्शन व ज्ञान-विज्ञान की महत्वपूर्ण धरोहर हैै।
शास्त्री प्रथमवर्ष से लेकर विद्यावारिधि तक प्रायः इन सभी विधाओं के प्राकृतभाषा की वाघ्मय के ग्रन्थ विशेषज्ञ-समिति द्वारा पाठ्यक्रम में निर्धारित किए गये हैं, जिनमें सम्राट अशोक व खारवेल के अभिलेख, आचारांगसूत्र, समयपाहुड, पवयणसार आदि आगमग्रंथ, प्राकृतलक्षण, प्राकतप्रकाश, सिद्धहैमशब्दानुशासन जैसे व्याकरणग्रंथ, चारूदत्तं, मृच्छकटिकं, अभिज्ञान-शाकुन्तलं, कप्पूरमंजरीसट्टगं, सुभद्दाणाडिगा जैसे रूपकग्रंथ, गाहासत्तसई एवं वज्जालग्गं जैसे मुक्तकग्रंथ, समराइच्चकहा, लीलववईकहा एवं कुवलयमालाकहा जैसे कथाग्रंथ, पउमचरियं आदि चरित्रग्रन्थ समाहित हैं। इनका नियमित रूप से अध्ययन-अध्यापन व अनुसन्धान का कार्य प्राकृतभाषा विभाग द्वारा किया जाता है। 

अध्ययन सामग्री / संदर्भ

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संकाय विवरण

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क्रमांक फ़ोटो नाम विभाग पद
1 सुदीप कुमार जैन प्रो. सुदीप कुमार जैन प्राकृत विभाग प्रोफेसर
2 कल्पना जैन प्रो. कल्पना जैन प्राकृत विभाग प्रोफेसर
3 विकास चौधरी डॉ विकास चौधरी प्राकृत विभाग सहायक आचार्य